Saturday, June 22, 2024

कुछ यूँ ही से चलते-चलते

कुछ यूँ ही से चलते-चलते 



महत्त्व 

ज़िंदगी की राह पे थी धूप जब भी लग रही, 

 मैं पिता का हाथ थामे, परछाँव में चलता गया, 

 बेखौफ़ निडर साहसी मैं सूर्य को आँखें दिखा, 

 मैं पिता की छाँव में बस पग पे पग रखता चला। 


 था डगर मुश्किल भरा, ठोकर लगी थी जब मुझे, 

 मैं सहारा ले उन्हीं का, मंजिल तरफ बढ़ता गया, 

 उनकी सीख-शिक्षा प्यार से, हर मुश्किलों में हूँ डटा, 

 मैं पिता के आशीर्वाद से, तूफान से लड़ता गया। 


 सारा शहर सूना हुआ सूना पड़ा है गाँव भी, 

 जबसे नहीं हो साथ तुम तबसे मिली न छाँव ही।




हिम्मत

किस्सा है वो, एक पुराने चट्टान का हिस्सा है वो,

टूटा है वो, शीशे सा किसी पत्थर से फूटा है वो


वो गिरा ना, है खड़ा

वो है पड़ा उस छोर पे

वो चढ़ रहा उस रेत पे

जिस ढेर का ना छोर रे

वो कर रहा नादानियाँ

मनमानियाँ जो मन कहे

वो बढ़ रहा उस ओर है

जिस ओर तूफां हैं खड़े


वो जल रहा है धूप में

बारिश बड़ी ही दूर है

वो जल रहा है आग में

है जल रहा सब नूर है

वो रक्त से लथपथ हुआ

भू-गर्भ में गिरता चला

फिर भी, कर यतन वो, कर जतन

निरभिग्न हिम्मत से खड़ा


कुछ शौंक अधूरे उलझे से

कुछ शौंक अधूरे उलझे से

उनको पूरा सुलझाना है

एक आशाओं का सूखा सागर

जिसको जल मग्न बनाना है



जो कुछ खोया जो पास नहीं

जो कुछ अब मेरे हाथ नहीं

वक्त की आंधी में उड़कर

वो सब कुछ जो अब साथ नहीं

हिम्मत की गठरी कांधे रखकर

फिर नए राह पर जाना है

कुछ शौंक अधूरे उलझे से

उनको पूरा सुलझाना है



अंधियारी रातों के जुगनू

जगमग कर मेरी राहों को

रौशन है किया हर पग डंडी

एक नई हवा है फिजाओं में

इस नई सुबह की उम्मीदों को

अंधेरों से दूर ले जाना है

कुछ शौंक अधूरे उलझे से

उनको पूरा सुलझाना है

"मैं" नींद की आगोश में

"मैं"  नींद की आगोश में 


मैं बिन रहा है, 

चुन रहा है, 

ख्वाब सारे राख से 

धधक-धधक जले मिले हैं 

ख्वाब सारे खाक में 


मैं कह रहा, कि मैं ही हूँ 

इस पार भी उस पार भी 

संसार ही तो सत्य था, 

रहेगा कल है आज भी 


अहम ने की हैं कोशिशें, 

कि मैं नहीं अद्वैत है 

इन कोशिशों की राशि है, 

गंगा में जितनी रेत है 


न प्रेम की महानता 

हुई कभी आवेश में, 

अवश्य ही न प्रेम ही 

बना कभी किसी द्वेष में 


मैं नींद की आगोश में, 

बस ख्वाब आँखों में भरे 

न ब्रह्म की कोई आस, 

न संसार से जाना परे


हम नींद की आगोश में 

बस लोभ पीछे चल पड़े, 

न ब्रह्म की कोई आस, 

न संसार से जाना परे

Monday, February 12, 2024

राम आएंगे

 राम आएंगे


आएंगे, आ रहे हैं से.. आ गए तक

राम ही थे, राम रहेंगे, राम ही हैं अब

आएंगे, आ रहे हैं से.. आ गए तक...


वो रूप अलौकिक, रूप अन्यतम, रूप विमोहन वाला

विष्णु अवतारी, वो भुजचारी, अद्भुत दीनदयाला


दयावान थे रघुकुल नंदन.. दयावान ही हैं अब..

आएंगे, आ रहे हैं से.. आ गए तक

              

विश्व स्वरूपा, अप्रतिम रूपा, जोको हृदय विशाला

वो युग अवतारी, सिंधु खरारी, संतन के प्रतिपाला


राम नाम का जाप रटे हैं..अवध पुरी में सब

आएंगे, आ रहे हैं से.. आ गए तक

Thursday, February 16, 2023

शिव वंदना

 शिव वंदना 


शिव वंदन मैं करुँ तुम्हारी 
अर्पित करदूँ दुनियां सारी 
नाम तेरे कि धुन ऐसी की 
अब पानी बस तेरी यारी

 

तुम शिव-शंकर और शिव-शक्ति हो 
मुझ जैसे सेवक की भक्ति हो 
तुम तांडव हो तुम्ही हो ध्यानी 
त्रिलोकी तुमसा न कोई ज्ञानी

 

भोलेनाथ त्रिलोचन तुम हो 
रूद्र, गिरीश, गंगाधर तुम हो 
नीलकंठ तुम रामनाथ हो 
तुम गौरी करुणानिधान हो

 

तुम पैगम्बर तुम त्रिपुरारी 
शोषित निर्धन के उपकारी 
जिसको ये जग न अपनाता 
तुमही में वो आश्रय है पाता

 

मेरी वीनती है दो भक्ति तुम्हारी 
जय जय भोले, जय जय भंडारी 
नाम तेरे की धुन ऐसी की 
अब पानी बस तेरी यारी

Tuesday, August 16, 2022

बारिशें

बारिशें .. ये बारिशें, मुझको भिगाने क्यों लगी ,

साज़िशें.. ये साज़िशें, मुझको हैं तेरी लग रही |


मैं  प्यास  अगर  तू  पानी  है ,

मैं  इश्क़  तू  मेरी  कहानी  है ,

हर  बाज़ी  जीत  के  मैं  तुझपे  ही  हारा|


मैं  नींद  अगर  तू  ख्वाब  मेरा ,

मैं  गीत  अगर  तू  साज़  मेरा ,

हर  धुन  मेरी  पे  बस  है  नाम  तुम्हारा |


राश्ते  ये  मंज़िले  जिसपे  तू  मुझे  न  मिले ,

सब  हैं  बेगाने  क्यों  लगे 


बारिशें .. ये बारिशें, मुझको भिगाने क्यों लगी ,

साज़िशें.. ये साज़िशें, मुझको हैं तेरी लग रही |


मैं  नज़र  अगर  तू  आँख  मेरे ,

रहता  है  संग  संग  साथ  मेरे, 

मैं  जाओ  जंहा  भी  साया  साथ  तुम्हारा |


एक  डोर  बंधे  हैं  दिल  अपने ,

मोती  में  पिरोये  हैं  सपने ,

बारिस  की  हर  एक  बून्द  में  इश्क़  तुम्हारा |


इश्क़  का  एहसास  तू , बारिशों  में  जो  पास  तू ,

बुँदे  ये  गाने  क्यों  लगें 


बारिशें .. ये बारिशें, मुझको भिगाने क्यों लगी ,

साज़िशें.. ये साज़िशें, मुझको हैं तेरी लग रही |


Monday, May 11, 2020

लॉकडाउन




लॉकडाउन 


हम बैठे बंद मकानों में
न कोई खेत खलियानो में जिन सड़कों पर राह न मिलती थी वो सब बैठे सन्नाटो में

कुछ घर के काम में व्यस्त हुए कुछ कार्यालय की विपदा में कुछ सोच रहे कब मौज मिलेगी? कुछ रोटी को भी तरस रहे

कुछ अंतिम फ्लाइट ले घर पहुंचे कुछ अभी राहों में भटक रहे कुछ सोच रहे क्या नया बनाऊ कुछ कुछभी खाने को तरस रहे

विपदा, संकट ये दुःख की घड़ी कुछ ज्यादा है तो बाँट सही ढूंढ उन्हें जो हैं मुस्किल में कुछ करने की अब ठान सही

मैं धन्य सभी उन मानुष का जिनके सीने में दिल हैं बड़े जो ढूंढ रहे, न चुप बैठे वो अंतिम पंक्ति के साथ खड़े क्योंकि अमीर तो सह लेगा मगर गरीब?

Monday, September 16, 2019

हिंदी दिवस


हिंदी दिवस 

एक भाव के शब्द अनेक
हर शब्दों में भाव अनेक
यह अंत आकाश के जैसी है
जिसमे, स्वर्ण शब्द हैं भरे अनेक

भारत को एक बनाती है,
ना धर्मों में बट जाती है
हिन्दू-मुस्लिम सबकी भाषा
यह, माँ बोली कहलाती है

मेरी माँ बोली ही उत्तम है
भाषाओं में सर्वोत्तम है
भारत माँ के माथे की बिंदी है
भारत की भाषा हिंदी है

कुछ यूँ ही से चलते-चलते

कुछ यूँ ही से चलते-चलते  महत्त्व  ज़िंदगी की राह पे थी धूप जब भी लग रही,   मैं पिता का हाथ थामे, परछाँव में चलता गया,   बेखौफ़ निडर साहसी मै...