Monday, March 4, 2019

एक आम इंसान हूँ मैं

एक आम इंसान हूँ मैं 

रहता हूँ भारत में, भारत के गुण गाता हूँ ,
करे जो कोई बुराई तो जी बिलकुल ना सह पाता हूँ ,
दूर विदेशों में भारत की पहचान हूँ मैं,
एक आम इंसान हूँ मैं

वो कहते हैं यह देश गन्दा है,
न कोई तमीज़ है न अच्छा बंदा है,
उनसे पूछो तो हर बुराई बताएंगे,
हाथो की उंगलियां तोड़-मरोड़ गिनाएंगे,
अरे भइया, कोई सोल्युशन भी बताओगे या बस गधो की तरह बस बक-बक मचाओगे ?
जनाब, जिनसे कुछ उम्मीद थी उन्ही से निराश हूँ मैं,
एक आम इंसान हूँ मैं 

वो अपने इनकम का भी टैक्स बचाता है,
लेकिन खाना तो महंगे वाले रेस्टोरेंट में ही खाता है,
हजारो-करोड़ो भारत में ही कमाता है,
और कुछ करने की बजाय देश से फुर्र हो जाता है,
जनाब, इस तरह की न जाने कितनी ही समस्याओं से हररोज़ परेशान हूँ मैं,
एक आम इंसान हूँ मैं 

कुछ हसते हैं कुछ मुस्कुराते हैं,
मेरे जैसे पैट्रिओट पर कुछ ठह-ठहाते हैं,
रहते हैं यहीं खाते हैं यहीं,
अपनी होशियारी भी बतियाते हैं यहीं,
ऐसे महानुभाओं के लिए थोड़ा नादान हूँ मैं 
एक आम इंसान हूँ मैं 

कुछ यूँ ही से चलते-चलते

कुछ यूँ ही से चलते-चलते  महत्त्व  ज़िंदगी की राह पे थी धूप जब भी लग रही,   मैं पिता का हाथ थामे, परछाँव में चलता गया,   बेखौफ़ निडर साहसी मै...